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उत्तरकर्ता jivtaraQuizzerParticipant
वैश्वीकरण का अर्थ या परिभाषा :-
वैश्वीकरण ऐसी प्रक्रिया है जो दुनिया के दूरस्थ भागों को जोड़ती है।
एक का दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। राज्यों के बीच बढ़ती हुई अन्त:क्रिया व अन्त:निर्भरता इसी के तथ्य हैं।
बीसवीं शदी के अन्तिम चरण में विश्वव्यापी स्तर पर उदारीकरण की लहर आ गयी।
ऐसा माना जाता है की भारत में वर्ष 1991 में वैश्वीकरण की शुरुवात हो गई |
इसने व्यापार, वित्त व सूचना का ऐसा विचित्र एकीकरण किया जिसे भूमण्डलीकरण की संज्ञा दी गयी।
दूरियाँ मिट गयीं जिससे सारा विश्व एक भूमण्डलीय ग्राम (Global Village) में बदल गया।
यातायात, संचार तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इतने चमत्कारी परिवर्तन हुये कि उन्होंने दूर-दूर के स्थानों को एक-दूसरे के निकट ला दिया।
पूँजी के मुक्त प्रवाह ने आर्थिक बन्धन तोड़ दिये, यहाँ तक कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने लोगों की जीवन शैली को बदल दिया। इस घटना को हम भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण के नाम से जानते हैं।
वैश्वीकरण के लिए कोई एक कारक जिम्मेदार नहीं है। कई प्रकार के कारकों ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में योगदान किया है ।
वैश्वीकरण के प्रमुख कारक/कारण निम्नवत् हैं :-
(1) प्रौद्योगिकी- वैश्वीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण कारक प्रौद्योगिकी रही है।
यातायात और संचार के आधुनिक साधनों तथा ई-मेल और इण्टरनेट की बुनियाद पर ही वैश्वीकरण की भव्य इमारत खड़ी हुई है।
मात्र कुछ सेकण्डों में विश्व के किसी भी हिस्से से सम्पर्क किया जा सकता है और महत्वपूर्ण सूचना थोड़े ही समय में सम्पूर्ण विश्व में पहुँचायी जा सकती है।
विश्व के जिन स्थानों तक पहुँचने में महीनों लगते थे वे अब कुछ ही घण्टों में मनुष्य की पहुँच में होते हैं।
प्रौद्योगिकी ने एक व्यक्ति को वैश्विक व्यक्ति में बदल दिया है।
प्रौद्योगिकी ने वैश्वीकरण को जिस तरह आगे बढ़ाया है उसके लिए कॉल सेन्टरों का उदाहरण लिया जा सकता है।
(2) अन्तर्राष्ट्रीयता का आदर्श- अन्तर्राष्ट्रीयता के आदर्श ने भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है।
अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा संघों की स्थापना तथा उनका बढ़ता दायरा व्यक्तियों की सोच में परिवर्तन लाया।
वैश्विक व्यापार की संस्थाओं जैसे-विश्व व्यापार संगठन, मानवाधिकार संस्थाओं जैसे एमनेस्टी इण्टरनेशनल तथा पर्यावरणीय संस्थाओं जैसे-ग्रीनपीस आदि ने वैश्वीकरण के वातावरण को तैयार करने में अप्रत्यक्ष लेकिन सशक्त भूमिका निभाई।
(3) आर्थिक मुद्दों की प्रधानता- शीतयुद्ध के खात्मे तथा सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन देखा गया।
अब राजनीतिक मुद्दों पर आर्थिक मुद्दों को प्रधानता दी जाने लगी।
आर्थिक मुद्दों की प्रधानता ने वैश्विक व्यापार को बढ़ावा दिया तथा आर्थिक मामलों के कारण विश्व के देश पुरानी दुश्मनी को भूलकर एक-दूसरे के नजदीक आये।
इससे वैश्वीकरण के लिए सकारात्मक वातावरण का निर्माण हुआ।
(4) समय की आवश्यकता- वैश्वीकरण समय की आवश्यकता है।
इंग्लैण्ड और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा अपनाई गयी औपनिवेशीकरण की नीति ने उनको सम्पूर्ण विश्व पर शासन करने का मौका दिया।
विश्व के विभिन्न भागों में नवस्वतन्त्र देशों के उदय के साथ भले ही उपनिवेशीकरण समाप्त हो गया लेकिन नवस्वतन्त्र देशों का अपने पुराने शासक देशों से सम्पर्क बना रहा।
भले ही अब सम्पर्क दूसरे तरीके का था परन्तु यह समय की आवश्यकता थी कि अपने को आगे बढ़ाने के लिए नवस्वतन्त्र राष्ट्र विश्व के विभिन्न देशों के साथ निकट सम्पर्क स्थापित करें।
(5) पारस्परिक लाभ की आशा- पारस्परिक लाभ की आशा में भी विश्व के विभिन्न देशों ने आपसी सम्बन्ध मजबूत किये।
कुछ देश कच्चे माल और खनिजों के भण्डार थे तो कुछ राष्ट्र तकनीकी सक्षमता और मानवीय संसाधन से भरपूर थे।
दोनों प्रकार के राष्ट्र एक-दूसरे के सहयोग से आगे बढ़ सकते थे। पारस्परिक लाभ की आशा ने भी वैश्वीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम किया।
वैश्वीकरण के प्रभाव :-
(1) औद्योगिक क्षेत्र में- उपभोक्ता व कम्पनी, दोनों के क्षेत्रों में देशी-विदेशी वस्तुओं की मांग
कच्ची व निर्मित सामग्री का एक दूसरे देशों में आदान-प्रदान
वैश्विक साझा बाज़ार का विकास
(2) वित्तीय क्षेत्र में- वैश्विक वित्तीय साझा बाज़ार का विकास
बाह्य एवं वित्तीय उधार तथा लेनदारी में वृद्धि
2008 के उत्तरार्द्ध में वैश्विक वित्तीय बाजार में वित्तीय संकट का परिदृश्य
(3) राजनीतिक क्षेत्र में- वैश्वीकरण के रूप में विश्व सरकार का उद्भव
औद्योगिक विकास के साथ शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों का उत्थान
अमेरीका जैसे पूंजीवादी राष्ट्र का चीन के साथ आर्थिक सहयोग तथा साझेदारी
(4) सूचना व संचार क्षेत्र में- वैश्वीकरण ने सूचना तकनीक के माध्यम से विश्व को जोड़ दिया
वैश्वीकरण के युग में तकनीकी दौड़/होड़ की शुरूआत
दूरसंचार एवं इन्टरनेट माध्यमों में अभिवृद्धि
(5) प्रतिस्पर्धा क्षेत्र- उत्पादकता में यथासंभव प्रतिस्पर्धा कम्पनियों द्वारा
अपने उत्पाद को वैश्विक बनाने की चुनौती
तकनीकी क्षमता का विकास एवं प्रयोग
(6) पर्यावरणीय क्षेत्र – विश्वव्यापी पर्यावरण के मार्ग में चुनौती, जलवायु, परिवर्तन, जल प्रदूषण तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में चुनौती
(7) सांस्कृतिक क्षेत्र- अन्तर-संस्कृति का विकास संस्कृतियों में विरोध की संभावना
रहन-सहन की क्षमता में अभिवृद्धि
विचारों का आदान-प्रदान तथा उत्पादों का उपभोग
(8) सामाजिक क्षेत्र – स्वैच्छिक समूहों की लोक-नीति में भागीदारी
मानवता तथा अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों में भागीदारी का विकास
(9) तकनीकी क्षेत्र- आधारभूत वैश्विक तकनीकी व्यवस्था का विकास
वैश्विक उच्चस्तरीय आंकड़ों की उपलब्धता
तकनीकी आधार पर वैश्विक सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्रों की पहचान
(10) विधिक/नैतिक क्षेत्र- अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना तथा अन्तर्राष्ट्रीय सामाजिक आन्दोलनों में अभिवृद्धि
अपराध के प्रति तीव्र जागरूकता
अन्तर्राष्ट्रीय विधियों का विकास
नैतिक तथा विधिक क्षेत्र में विश्वस्तरीय व्यापक परिचर्चा
वैश्वीकरण का मुख्य दोष :-
* इसमें निवेश का मुख्य भाग प्राथमिकता वाले क्षेत्रों से ही लगाया गया और संरचनात्मक क्षेत्र अछूता ही रह गया।
* इसके अतिरिक्त विकसित तथा विकासशील राज्यों के बीच खाई अधिक बड़ी हो गई है।
* प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा घरेलू निवेश का अधिकांश भाग पहले से विकसित राज्यों को मिला । आर्थिक दृष्टि से कमजोर राज्य, विकसित राज्यों के साथ प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गये । मुक्त बाजार में ये राज्य औद्योगिक निवेश प्रस्तावों को आकर्षित करने में असमर्थ रहते हैं तथा इन प्रक्रियाओं से उनकी परेशानियाँ और बढ़ गई|
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