विजयनगर साम्राज्य की मुद्रा प्रणाली भारत की सर्वाधिक प्रशंसनीय मुद्रा प्रणालियों में से थी।
विजयनगर साम्राज्य के स्वर्ण के सिक्कों से साम्राज्य की समृद्धि का पता चलता है।
विजयनगर का सर्वाधिक प्रसिद्ध सिक्का स्वर्ण का बराह था, जिसका वजन 52 ग्रेन होता था, जिसे विदेशी यात्रियों ने हूण, परदौस या पगोड़ा के रूप में उल्लिखित किया है।
26 ग्रेन वजन का आधा वराह या प्रताप, 13 ग्रेन का चौबाई बराह या आधा-प्रताप , 5.5 ग्रेन का फणम होता था।
चाँदी के छोटे सिक्के तार कहलाते थे।
एक वराह 60 तारों के समतुल्य होता था।
विजयनगर साम्राज्य के सिक्कों से वहाँ के नरेशों के धार्मिक विश्वासों का भी पता चलता है।
विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर के स्वर्ण वराह सिक्कों पर हनुमान एवं गरुड़ की आकृतियाँ अंकित हैं ।
तुलुव वंश के सिक्कों पर बैल, गरुड़, उमामाहेश्वर, वेंकटेश और बालकृष्ण की आकृतियाँ
एवं सदाशिव राय के सिक्कों पर लक्ष्मीनारायण की आकृति अंकित है।
अरविदु राजवंश के शासक वैष्णव धर्मानुयायी थे, अतः उनके सिक्कों पर वेंकटेश, शंख एवं चक्र अंकित है।
विजयनगर का बराह एक बहुत सम्मानित सिक्का था और संपूर्ण भारत तथा विश्व के प्रमुख व्यापारिक नगरों में इन्हें स्वीकार किया गया था |