संविधान में मुख्यमंत्री की नियुक्ति और उसके निर्वाचन के लिए कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है।
केवल अनुच्छेद 164 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि राज्यपाल किसी भी व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र है।
संसदीय व्यवस्था में राज्यपाल, राज्य विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही मुख्यमंत्री नियुक्त करता है लेकिन यदि किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री की नियुक्ति में अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।
ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल सबसे बड़े दल या दलों के समूह के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है और उसे एक माह के भीतर सदन में विश्वास मत प्राप्त करने के लिए कहता है।
राज्यपाल अपने व्यक्तिगत फैसले द्वारा मुख्यमंत्री की नियुक्ति तब कर सकता है, जब कार्यकाल के दौरान उसकी मौत हो जाए और कोई उत्तराधिकारी तय न हो।
हालांकि मुख्यमंत्री की नियुक्ति के पश्चात सत्तारूढ़ दल सामान्यत: नये नेता का चुनाव कर लेता है और राज्यपाल के पास उसे मुख्यमंत्री नियुक्त करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता।
संविधान में ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है कि मुख्यमंत्री नियुक्त होने से पूर्व कोई व्यक्ति बहुमत सिद्ध करे।
राज्यपाल पहले उसे बतौर मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकता है फिर एक उचित समय के भीतर बहुमत सिद्ध करने को कह सकता है। ऐसा बहुत से मामलों में हो चुका है।
एक ऐसे व्यक्ति को जो राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं भी हो, छह माह के लिए मुख्यमंत्री नियुक्त किया जा सकता है।
इस समय के दौरान उसे राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचित होना पड़ेगा, ऐसा न होने पर उसका मुख्यमंत्री का पद समाप्त हो जाएगा।
संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री को विधानमंडल के दो सदनों में से किसी एक का सदस्य होना अनिवार्य है।
सामान्यतः मुख्यमंत्री निचले सदन (विधानसभा) से चुना जाता है लेकिन अनेक अवसरों पर उच्च सदन (विधान परिषद) के सदस्य को भी बतौर मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है।