भारत का नेपोलियन “समुद्र गुप्त” कहा जाता है
पाश्चात्य विद्वान विन्सेन्ट स्मिथ ने उनकी वीरता से प्रभावित होकर उन्हें भारत का नेपोलियन कहा है जबकि वह नेपोलियन से भी महान था।
समुद्रगुप्त एक महान् विजेता, धर्म विजयी एवं ‘कविराज’ था ।
उसकी प्रतिभा बहुमुखी थी।
उसके बारे में ‘प्रयाग प्रशस्ति’ में सही ही लिखा है, ‘कोनुसाद्योऽस्य न स्याद गुणमति’ अर्थात् विश्व में कौन-सा ऐसा गुण है, जो उसमें नहीं है।
डॉ. स्मिथ महोदय ने उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है। वस्तुतः यह एक विदेशी इतिहासकार का कथन है, जबकि प्रारम्भ से लेकर अन्त तक की समुद्रगुप्त की नीतियों एवं विजयों को दृष्टिगत रखते हुए हमें कहना चाहिए कि ‘नेपोलियन यूरोप का समुद्रगुप्त’ था।
महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता के बाद नेपोलियन का पराभव हो गया था परन्तु समुद्रगुप्त अन्त तक दिग्विजयी ही रहा।
समुद्रगुप्त यद्यपि वैष्णव मतानुयायी था परन्तु वह अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु था।
मजूमदार महोदय का समुद्रगुप्त के सन्दर्भ में यह मूल्यांकन काफी उचित प्रतीत होता है कि “लगभग पाँच शताब्दियों के राजनीतिक विकेन्द्रीकरण तथा विदेशी आधिपत्य के बाद आर्यावर्त (समुद्रगुप्त के काल में) पुन: नैतिक, बौद्धिक तथा भौतिक उन्नति की चोटी पर जा पहुँचा।
अत: समुद्रगुप्त न केवल गुप्त वंश में अपितु प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महान् सम्राट था।