भारतीय संविधान का राजनीतिक दर्शन ‘उदारवादी एवं लोकतान्त्रिक समाजवादी विचारों के मिश्रण तथा कहीं-कहीं गाँधीवादी दर्शन’ का मिला जुला रूप है।
हमारे संविधान के आधारभूत दर्शन के अनिवार्य लक्षण :-
1. प्रभुसत्ता : यह संविधान सभा भारत को एक स्वतन्त्र व सार्वभौम गणतन्त्र घोषित करने में अपने सुदृढ़ व सच्चे निश्चय की अभिव्यक्ति करती -जवाहरलाल नेहरू
2. राष्ट्रवाद : अपितु, आगे चलकर यह हम सभी के हित में होगा कि इस देश में बहुसंख्या या अल्पसंख्या जैसी कोई वस्तु नहीं है तथा इस देश में केवल एक समुदाय के लोग रहते हैं। -वल्लभभाई पटेल
3. लोकतन्त्र : सभा ने सर्ववयस्क मताधिकार के सूत्र को अपनाया है, उसे आम आदमी तथा लोकतान्त्रिक शासन की सफलता में पूरी आस्था है।
-सर अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर
4. धर्मनिरपेक्षता : हम यह मानते हैं कि किसी धर्म को विशेष या वरीयतापूर्ण स्तर न दिया जाये।
-डॉ. एस. राधाकृष्णन
5. समाजवाद : लोकतान्त्रिक समाजवाद का ध्येय गरीबी, अज्ञानता, बीमारी तथा अवसर की असमानता को समाप्त करना है।
-डॉ. बी. आर. अम्बेडकर