प्रतीत्यसमुत्पाद के अनुसार प्रत्येक वस्तु का कारण होता है। कारण नष्ट हो जाने पर वस्तु भी नष्ट हो जाती है
इससे प्रमाणित होता है कि प्रत्येक वस्तु नश्वर है प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत अनित्यवाद में प्रतिफलित होता है। इस प्रकार अनित्यवाद के अनुसार विश्व की प्रत्येक वस्तु अनित्य है चाहे वह जड़ हो अथवा अचेतन।
बुद्ध ने ‘प्रत्येक वस्तु सत है’ तथा प्रत्येक वस्तु असत् है जैसे मतों के विपरीत मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। मध्यम मार्ग का सिद्धान्त यह है कि जीवन परिवर्तनशील है। जीवन को परिवर्तनशील कहकर बुद्ध ने ‘सत’ और ‘असत्’ का समन्वय किया है।
बुद्ध के अनित्यवाद को उनके अनुयायियों ने क्षणिकवाद में परिवर्तित कर दिया। यह सिद्धांत अनित्यवाद से भी आगे है।
क्षणिकवाद के अनुसार विश्व की प्रत्येक वस्तु सिर्फ अनित्य ही नहीं है, बल्कि क्षणभंगुर भी है जैसे नदी की बूंद क्षण भर के लिए सामने आती है और दूसरे क्षण विलीन हो जाती है उसी प्रकार जगत की समस्त वस्तुएं क्षणमात्र के लिए अपना अस्तित्व कायम रख पाती हैं।
क्षणिकवाद के समर्थकों का एक प्रसिद्ध तर्क है अर्थ क्रिया कारित्व, का तर्कअर्थ क्रिया कारित्व का तर्क है “किसी कार्य को उत्पन्न करने की शक्ति। किसी वस्तु की सत्ता को तभी तक माना जा सकता है
जब तक उसमें कार्य करने की शक्ति मौजूद हो आकाश कुसुम की तरह जो असत है उससे किसी कार्य का विकास नहीं हो सकता है इससे सिद्ध होता है कि कोई वस्तु कार्य उत्पन्न कर सकती है तो उसकी सत्ता है और कार्य उत्पन्न नहीं कर सकती है तो उसकी सत्ता नहीं है।
एक वस्तु से एक समय एक ही कार्य सम्भव है। यदि एक समय एक वस्तु से एक कार्य का निर्माण होता है और दूसरे से दूसरे कार्य का तो इससे सिद्ध होता है कि दूसरी वस्तु के निर्माण के साथ पहली वस्तु का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
अभिप्राय यह कि संसार की समस्त वस्तुओं का अस्तित्व क्षणमात्र रहता है इसे ‘क्षणिकवाद’ कहते हैं।
क्षणिकवाद’ के सिद्धांत पर प्रायः प्रश्न भी खड़ा किया जाता रहा है, कि ‘क्षणिकवाद’ का सिद्धान्त प्रमाण संगत है अथवा नहीं। क्षणिकवाद की कमजोरियों को इंगित करते हुए आलोचकों का कहना है कि ‘क्षणिकवाद’ का सिद्धांत कार्य-कारण सिद्धांत का खण्डन करता है।
अगर कारण क्षणमात्र रहता है तो फिर उससे कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती है, क्योंकि कार्य की उत्पत्ति के लिए कारण की सत्ता को एक क्षण से अधिक रहना चाहिए।
अगर कारण क्षणभंगुर होगा तो कार्य की उत्पत्ति शून्य से माननी पड़ेगी जो कि विरोधाभास है। “क्षणिकवाद’ से कर्म सिद्धांत का भी खंडन होता है कर्म |सिद्धांत के अनुसार कर्म का फल अवश्य मिलता है।