पंडवानी महाभारत-कथा का छत्तीसगढ़ी भाषा लोक-गायन रूप है।
छत्तीसगढी लोक-धुन में महाभारत की सम्पूर्ण गाथा को गायक अपने स्वर बोली, अभिनय, कथा-कथन और लोक संगीत के सहारे आंखों के सामने सकार करता है |
इकतारा, झांझ, हारमोनियम, तबला, बेंजो, रागी की हुंकार की संगत से पंडवानी गायको का जो लोकरूप उभरता है।
पंडवानी गायक दर्शक-श्रोताओं को लोक-परम्परा के अलौकिक आनंद के चरम तक ले जाने में सक्षम होता है।
पंडवानी का मूल आधार परधान देवारों की पंडवानी गायकी, महाभारत की कथाएं और सबल सिंह चौहान कृत दोहा-चौपाई की महाभारत है।
आज पंडवानी गायकों में श्री झाडूराम देवांगन, पद्मश्री श्रीमती तीजन बाई, पुनाराम निषाद, सुश्री रितु वर्मा, श्रीमती उषा बारले, श्रीमती प्रतिमा बारले प्रमुख हैं।
वैसे तो पंडवानी गायन की कथावस्तु महाभारत के विविध प्रसंग हैं, किंतु इनकी प्रसिद्धि द्रौपदी चीर-हरण, स्वयंवर, कर्ण-वध, दुःशासन-वध, भीष्म-अर्जुन लड़ाई आदि प्रसंगों के भावमय सांगीतिक प्रस्तुति में सर्वाधिक है।
पंडवानी की प्रचलित दो प्रमुख शैलियाँ हैं- वेदमती और कापालिक।
कापालिक शैली के अंतर्गत पंडवानी गायिकी में महाभारत के काल और पात्रों के चरित्र की कल्पना के अनुरूप अभिनय करके गाया जाता है। व्याकरण के हिसाब के अभिनीत पात्रों का कथन स्वयं अर्थात् प्रथम पुरुष के तौर पर किया जाता है, जबकि वेदमती शैली में पात्रों का अभिनय व कथवाचन द्वितीय पुरुष में व्यक्त होता है।
झाडूराम देवांगन, वेदमती पंडवानी शैली के प्रवर्तक थे।