वर्ष 1948 में निर्मित, नेपाल के प्रथम संविधान के अनुसार राजा को नेपाल का वास्तविक शासक बनाया गया।
राजा का पद वंशानुगत था।
अक्टूबर, 1950 ई. में नेपाल में लोकतंत्र के लिए क्रांति प्रारम्भ हुई थी और 1951 की फरवरी, के अंत में नेपाल में पहली बार वहाँ लोकतंत्र की स्थापना हुई।
जनता के अधिकार बहुत ही सीमित थे ।
वर्ष 1959 में महाराजा त्रिभुवन के निधन के बाद तात्कालिक राजा महेन्द्र ने देश में एक नया संविधान लागू किया । इसी वर्ष नेपाल में पहली बार संसद के लिए चुनाव हुए।
अतः सीमित अर्थों में नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनायी गयी ।
यह व्यवस्था अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकी।
वर्ष 1962 में राजा महेन्द्र ने इस सीमित लोकतंत्र को समाप्त कर दिया।
जनता के सभी अधिकार वापस ले लिए गये।
यह स्थिति 1989 तक बनी रही। वर्ष 1990 में लोकतंत्र की बहाली के लिए आम जनता ने आंदोलन चलाया।
जन आंदोलन के समक्ष झुकते हुए तत्कालीन राजा वीरेन्द्र ने देश में बहुदलीय लोकतंत्र की माँग को मान लिया।
वर्ष 1991 में हुए प्रथम बहुदलीय चुनावों के बाद ‘नेपाली कांग्रेस’ ने सरकार बनायी।
नेपाली कांग्रेस के नेता जी० पी० कोईराला को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया और राजा को संवैधानिक प्रधान का दर्जा दिया गया। लेकिन इस बार भी लोकतंत्र अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सका।
1996 से माओवादियों ने नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति एवं नेपाल को गणतंत्र घोषित करने के लिए आंदोलन चलाना शुरू कर दिया।
जून, 2001 में एक नाटकीय घटना-क्रम में राजा वीरेन्द्र एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या कर दी गई।
राजा विरेन्द्र की हत्या के बाद ज्ञानेन्द्र को नया राजा बनाया गया।
राजा ज्ञानेन्द्र ने फरवरी, 2005 में नेपाल की लोकतांत्रिक सरकार को बर्खास्त कर दिया और सारी शक्तियाँ अपने हाथों में ले ली।
लेकिन जन-आंदोलन के कारण नेपाल के राजा को अपना पद त्यागना पड़ा।
वर्ष 2008 में नेपाल में नये संविधान के निर्माण हेतु संविधान सभा का चुनाव कराया गया तथा पूर्ण रूप से नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना की गई |
वर्ष 2008 को नेपाल में दूसरी बार “लोकतंत्र की स्थापना” या लोकतंत्र की वापसी भी माना जाता है |