निद्रित कलियों से तात्पर्य यह है कि-
” जिस प्रकार वसन्त के आगमन से ऐसा प्रतीत होता है की सुकुमार शिशु रूपी वसन्त अपने स्वप्न भरे कोमल हाथों को निद्रा से अलसाई कलियों पर फेरकर उन्हें प्रभात के आने का संदेश देना चाहता है उसी प्रकार कवी निराशा एवं आलस्य में डूबे नव-युवकों को अपनी कविताओं के माध्यम से प्रेरित कर उन्हें उत्साह से भर देना चाहता है। जिससे वे रचनात्मक कार्यों की ओर प्रेरित हों।”
प्रस्तुत पंक्तियाँ वसन्त भाग-3 के ‘ध्वनि’ नामक कविता से ली गई हैं।
इसके रचयिता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
इन पंक्तियों में कवि देश के युवाओं को सुन्दर भोर का संदेश देना चाहता है।