विजय नगर साम्राज्य की ‘नायकार व्यवस्था‘ सल्तनत कालीन इक्ता व्यवस्था पर आधारित थी। विजय नगर साम्राज्य में सैनिक और असैनिक अधिकारियों को विशेष सेवाओं के बदले भू-क्षेत्र प्रदान किया जाता था। जिसे ‘अमरम कहते थे।
अमरम से प्राप्त कर को ग्रहण करने वाले को अमरनायक कहा जाता था।
विजयनगर साम्राज्य में प्रान्ताध्यक्षों के साथ-साथ नायंकार व्यवस्था भी थी जो सामन्तवादी व्यवस्था का ही एक रूप था।
कुछ विद्वानों के अनुसार ‘नायक’ शब्द सेनापतियों के लिये प्रयुक्त किया जाता था। अन्य विद्वान ‘नायक’ को भूसामंत मानते हैं। ये भूसामन्त निश्चित संख्या में सैनिक रखते थे जिसके व्यय के लिये राजा उन्हें भूखण्ड (जागीर) प्रदान करता था जिसे ‘अमरम’ कहा जाता था।
अमरम प्राप्त करने पर नायक के दो उत्तरदायित्व होते थे प्रथम, इसका आय-व्यय केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करना तथा दूसरा, निश्चित संख्या में सैनिक रखना जिसे उसे राजा की सेवा के लिये प्रस्तुत करना पड़ता था।
इन नायकों को ‘अमरम’ में प्रशासनिक अधिकार भी प्राप्त थे। उत्तरदायित्वों का निर्वाह न करने पर राजा अमरम को जब्त कर सकता था और नायक को दण्ड दे सकता था।
एक विशेष तथ्य यह है कि यह नायंकार व्यवस्था मुख्य रूप से तमिलनाड़ क्षेत्र में प्रचलित थी। इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नायंकारी प्रणाली साम्राज्यवादी प्रणाली थी। लेकिन ये नायक प्रान्तीय अधिकारियों (नायक) से भिन्न ज्ञात होते हैं।
प्रशासन, सैनिक दायित्व तथा राजकीय स्थिति की दृष्टि से गवर्नर और भूस्वामी सामन्त में अन्तर था।
इन नायंकारों की उच्छृखलता का दमन करने के लिये अच्युत राय के शासन काल में महामंडलेश्वर नामक एक अधिकारी की नियुक्ति की गई थी। वास्तव में, विजयनगर साम्राज्य के पतन में इस नायंकार प्रणाली का भी योगदान था।