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उत्तरकर्ता jivtarachandrakantModerator
धन निष्कासन का सिद्धांत दादाभाई नौरोजी ने दिया था
दादाभाई नौरोजी सन् 1850 में एलफिन्स्टन संस्थान में प्रोफेसर और ब्रिटिश सांसद बनने वाले पहले भारतीय थे। वे ‘ग्रैण्ड ओल्ड मैन ऑफ इण्डिया’ और भारतीय राष्ट्रवाद के पिता के रूप में पहचाने जाते थे।
उन्होंने सन् 1901 में छपी अपनी पुस्तक ‘पॉवर्टी एण्ड अनब्रिटिश रुल इन इण्डिया‘ में ‘धन निष्कासन का सिद्धान्त | (आर्थिक दोहन का सिद्धान्त) का उल्लेख किया है।
धन निकासी सिद्धान्त का प्रभाव:-
धन निकासी सिद्धान्त के प्रतिपादन का पहला प्रभाव यह रहा कि। पहली बार राष्ट्रवादियों ने भारतीय आय-व्यय से सबन्धित आँकड़े पेश किये। दादा भाई नौरोजी ने अपने पेपर “इंग्लैण्ड डेब्ट टू इण्डिया‘ नामक लेख में धन के निकास का आर्थिक आँकड़ा पेश किया।
डी.ई. वाचा के अनुसार 1860 से 1900 के बीच आर्थिक निकास का वार्षिक औसत 30 से 40 करोड़ रूपये था जबकि आर. पी. दत्त के अनुसार प्रतिवर्ष 2 करोड़ 20 लाख पौण्ड था।
धन निकासी सिद्धान्त के प्रतिपादन का दूसरा प्रभाव यह हुआ कि अब इसे राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में स्वीकार किया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने कलकत्ता अधिवेशन (1896) में सर्वप्रथम धन के निष्कासन के सिद्धान्त को स्वीकार किया।
गोपाल कृष्ण गोखले ने। 1901 में अपने आर्थिक तथ्यों को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में प्रस्तुत किया। इसके बाद सभी राष्ट्रवादी आन्दोलनों में इसे प्रमुखता मिली।
धन निकासी सिद्धान्त ने काँग्रेस में ‘उग्रपंथी राजनीति के उदय में भी सहायता दी इनके लेखों को पढ़ने एवं आँकड़ों को समझने के बाद नवयुवक आक्रोशित हुए और उनका उदारपंथियों से मोहभंग हुआ।
अब वे उग्र राजनीति में विश्वास करने लगे धन के निकासी के प्रति उत्तर में उन्होंने ‘स्वदेशी’ का नारा दिया ताकि भारतीय धन बाहर जाने से रुक जाय।
उदारपंथियों द्वारा ‘धन निकासी सिद्धांत’ प्रतिपादित करने के बाद उग्रपंथी राजनीति के उदय तथा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पनप रहे असंतोष को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने राजनीतिक एवं आर्थिक सुधार किये ताकि उभर रहे राजनीतिक असंतोष को कम किया जा सके।
इनमें 1892 के अधिनियम द्वारा केन्द्रीय विधान मण्डल में सदस्यों की संख्या में वृद्धि, बजट पर भाषण देने का अधिकार, कारखाना अधिनियम द्वारा श्रमिकों को कुछ सुविधाएँ आदि शामिल हैं।
इस तरह से धन निकासी के सिद्धान्त ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में प्रेरक का काम किया। इसके कारण राष्ट्रवादियों को ब्रिटिश सरकार के औपनिवेशिक चरित्र को उद्घाटित करने का अवसर मिला। वैश्विक जनमत को ब्रिटिश शोषण से अवगत कराया जा सका।
इसी का परिणाम था कि स्वदेशी की संकल्पना को महत्ता मिली। इसके फलस्वरूप भारतीय जनमानस की उग्र प्रतिक्रिया ने ब्रिटिश सरकार को अपनी नीतियों में परिवर्तन करने के लिए प्रेरित किया।
प्रभाव
1. औपनिवेशिक शासन चरित्र उद्घाटन में सहायता।2. राष्ट्रवादियों के लिए विरोध का मुद्दा मिला।
3. वैश्विक स्तर पर ब्रिटिश सरकार की कलई खुली।
4. पहली बार राष्ट्रीय आय सबन्धित आँकड़े प्रस्तुत हुए।
5. सरकार की नीतियों में परिवर्तन के लिए दबाव बना
6. विद्वानों के बीच विवाद को जन्म दिया।