शीत युद्ध में लिप्त दो विरोधी गुटों में बँटे हुए विश्व में, युद्धोत्तर काल के बहुत-से राज्यों ने इन दोनों गुटों से तथा शीत युद्ध और इसकी संधियों से दूर रहने का निर्णय किया।
ऐसा उन्होंने इसलिए किया ताकि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में वे अपनी स्वतंत्रता कायम रख सकें।
ऐसे राज्यों का मार्गदर्शन करने वाली नीति धीरे-धीरे गुटनिरपेक्षता के नाम से जानी जाने लगी।
विदेश नीति के रूप में गुटनिरपेक्षता का अर्थ है विरोधी गुटों की शांति, राजनीति, शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता, शीत युद्ध तथा संधि व्यवस्थाओं से दूर रहना।
दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि गुटनिरपेक्षता हमारे समय में नए बने सम्प्रभु स्वतंत्र राज्यों की विदेश नीति के सिद्धांत के रूप में, उनके इस दृढ़ निश्चय का परिणाम था कि वे दोनों महाशक्तियों की सैन्य संधियों से दूर रहेंगे तथा प्रतिद्वंद्वी विरोधी शक्तियों द्वारा अपनी-अपनी विश्वव्यापी रणनीतियों में उन्हें घसीट ले जाने के प्रयत्नों को दृढ़ प्रयत्नों से निष्फल करने का प्रयास करेंगे, ताकि वे उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों की शतरंज का मोहरा न बना सकें।
नए राज्यों के इस निश्चय के परिणामस्वरूप गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म हुआ।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने शीत युद्ध को रोकने या कम करने में एक अहम भूमिका निभाई हैं।
गुटनिरपेक्षता के प्रमुख तत्व:-
शीत युद्ध का विरोध
स्वतंत्र विदेश निति का समर्थन
सैन्य तथा राजनितिक गठबंधनो का विरोध
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व तथा हस्तक्षेप को बढ़ावा