कदली, कपास , गज ये शब्द आग्नेय आदिवासी भाषा से आए हैं|
ये शब्द देशज शब्द हैं तथा इसका मूल स्त्रोत आग्नेय आदिवासी भाषायें है |
डॉ. हरदेव बाहरी के मतानुसार देशज शब्द इस देश की धरती की उपज हैं |
ये सामान्यतः दो प्रकार के हैं –
(1) जो आदिवासी जातियाँ ने अपनाए हैं
(2) अपनी गढंत के शब्द
(1) जो आदिवासी जातियाँ ने अपनाए शब्द :- कदली, कपास, कोड़ी, गज (हाथी), टीडा, तोर, परवल, बाजरा, भिण्डी, मिर्च, सरसों आदि. ये शब्द कोल संथाल आदि जातियों से आए हैं|
इसी प्रकार कुछ देशज शब्द द्रविड़ जातियों से आए हैं, जैसे-ऊखल, कज्जल, काच, कुद्दाल, घुण, ताला, डोसा, इडली, सांभर, पिल्ला आदि|
(2) अपनी गढंत के शब्द- अंडवंड, ऊटपटांग, कड़क, खचाखच, खटपट, चटपट, खर्राटा, खलबली, गड़गड़ाहट, घुन्ना, चाट, चिड़िचिड़ा, चुटकी, छिछला, फेंकार, टुच्चा, ठठेरा, धमक, पटाखा, पापड़, भभक, खरौंच, खुर्रट, घुड़कना, सनसनाना, हिनहिनाना आदि|
नोट :- यदि आप प्रतियोगी परीक्षा की तयारी कर रहे है तो विकल्म के अनुसार उत्तर का चयन करे , इसका सटीक उत्तर प्राप्त होने पर कृपया उत्तर देंवे |