इलाहाबाद की संधि के बाद अंग्रेजों को 26 लाख रुपया वार्षिक देने के बदले ‘दीवानी’ का अधिकार तथा 53 लाख रुपया बंगाल के नवाब को देने पर निजामत का अधिकार प्राप्त हुआ।
मुगलकाल में प्रान्तीय प्रशासन में दो प्रकार के अधिकारी होते थे, जिसे सूबेदार तथा निजामत भी कहा जाता था, का कार्य सैनिक प्रतिरक्षा, पुलिस और न्याय प्रशासन से जुड़ा था।
दुसरा प्रान्तीय स्तर पर श्रेष्ठ पद दीवान का था, जो राजस्व एवं वित्त व्यवस्था की देख-रेख करता था, ये दोनों अधिकारी एक-दूसरे पर नजर रखते थे और मुगल बादशाह के प्रति उत्तरदायी होते थे।
दीवानी और निजामत दोनों अधिकार प्राप्त कर लेने के बाद ही कम्पनी ने बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत की।
द्वैध शासन की शुरुआत बंगाल में 1765 ई. से मानी जाती है, इसके अन्तर्गत कम्पनी दीवानी और निजामत के कार्यों का निष्पादन भारतीयों के माध्यम से करती थी, लेकिन वास्तविक शक्ति कम्पनी के पास ही होती थी।
कम्पनी और नवाब दोनों प्रशासन की व्यवस्था को ही बंगाल में द्वैध शासन के दुष्परिणाम देखने को मिले।
समूचे बंगाल में अराजकता अव्यवस्था तथा भ्रष्टाचार का माहौल बन गया।
व्यापार और वाणिज्य का पतन हुआ।
व्यापारियों की स्थिति भिखारियों जैसे हो गयी।
समृद्धि और विकास विकसित
उद्योग विशेष रेशम और कपड़ा उद्योग नष्ट हो गए। किसान भयानक गरीबी के शिकार हो गए।