अयमय खाँड़ न ऊखमय का अर्थ या तात्पर्य :-
परशुराम जब विश्वामित्र से लक्ष्मण के बारे में कहते हैं कि इसे तो बस आपके शील के कारण छोड़ रहा हूँ, अन्यथा थोड़े परिश्रम से ही अपने फरसे से इसे मार कर मैं अपने गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता, तब विश्वामित्र उनकी इस बात पर मन-ही-मन हँसते हुए सोचते हैं कि मुनि को हरा-ही-हरा सूझ रहा है।
आगे वे राम-लक्ष्मण के बारे में सोचते हुए स्वयं से कहते हैं-
‘अयमय खाँड़ न ऊखमय’ अर्थात् ये बालक लोहे की बनी तलवार हैं न कि गन्ने की खाँड, जो मुँह में लेते ही गल जाए। फिर भी परशुराम इन्हें पहचानने में भूल कर रहे हैं।