अभिमन्यु के पुत्र “परीक्षित” था |
महाभारत युद्ध में यद्यपि धृतराष्ट्र के पूरे सौ पुत्र मारे गए थे और पाँचों पांडव जीवित बच गए थे किंतु यह विजयश्री उन्हें बड़ी महँगी पड़ी थी।
युद्ध ने उनके वंश-वृक्ष को जैसे जड़ से ही खत्म करके रख दिया था।
द्रौपदी से उत्पन्न पांडवों के पाँच पुत्र तथा अर्जुन-सुभद्रा का वीर पुत्र अभिमन्यु इस युद्ध में शत्रुओं के द्वारा बड़ी निर्ममता से मारे गए थे।
इससे भी ज्यादा दुःखद बात थी, पांडवों की वंश-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु का अश्वत्थामा द्वारा बह्मास्त्र से खात्मा करना।
किंतु अंततः पांडवों के सदा-सहायक वासुदेव ने उत्तरा के मृत पैदा हुए बालक को जीवन-दान दिया।
परीक्षित(समाप्त) होते हुए कुरु-कुल को इस बालक से नया जीवन मिला था, इसलिए इसका नाम रखा गया, परीक्षित ।
महाभारत का अंत पांडवों द्वारा इसी बालक उल्लेखनीय है कि इसी राजा परीक्षित के अंत की कथा से महाभारत का प्रारंभ हुआ है ।(जब भी महाभारत का वर्णन किया जाता है )
महाभारत के प्रथम पर्व अर्थात् आदिपर्व में बताया गया है कि महाभारत-कथा का प्रथम वाचन मुनि वैशम्पायन ने जिस राजा, जनमेजय, के सर्प-सत्र में पहली बार किया था, वह जनमेजय और कोई नहीं, इन्हीं राजा परीक्षित का ही पुत्र था।
जनमेजय ने अपना सर्प-सत्र राजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही किया था ।
अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से बचे परीक्षित के भाग्य में शायद अकाल-मृत्यु का ही योग था, तभी तो तमाम इंतजाम के बाद भी अंततः राजा परीक्षित सर्प-दंश द्वारा ही मारे गए।