समानता के दो/तीन/चार प्रकार निम्नलिखित है :-
1) सामाजिक समानता- सामाजिक समानता का अर्थ है प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान अधिकार प्राप्त हो। तथा सबको समान सुविधाओं के अवसर मिले, जिस समाज में जाति, धर्म, लिंग, के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाता वहाँ सामाजिक समानता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
2) नागरिक या कानूनी समानता- इसका आशय नागरिकता के समान अधिकारों से होता है। नागरिकों के सभी मलाधिकार सुरक्षित हो तथा सभी नागरिकों को समान रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त हो।
3) प्राकृतिक समानता – इसका निहितार्थ है कि प्रकृति ने सभी मानवों को समान बनाया है। प्राचीन काल में यूनान के स्टोइक विचारकों तथा बाद में पोलिबियस व सिसरो जैसे रोम के विचारकों ने प्लेटो तथा अरस्तु द्वारा समर्थित मानव जाति की प्राकृतिक असमानता के सिद्धान्त का खण्डन किया। सिसरो ने कहा-“कोई वस्त. अन्य वस्त. के समान उतनी नहीं है जितना हम मानव एक-दूसरे जैसे तथा एक-दूसरे के समान है।” स्टोइको तथा रोम वालों ने प्रकृति का कानून’ का तर्क दिया जो देश अथवा जाति के भेद के बिना सभी लोगों पर समान रूप में लागू होता है। ईसाई विचारकों ने प्रकृति के कानून को ‘ईश्वरीय कानून’ का समरूपी माना और इसलिए बाइबिल के ‘ईश्वर का पितृत्व तथा मानवों का भ्रातृत्व’ के आदेश द्वारा समर्थित सूत्र के रूप में मानव जाति की प्राकृतिक समानता के सिद्धान्त को वैध ठहराया। आधुनिक काल में रूसो तथा मार्क्स को मानव जाति की प्राकृतिक समानता के पक्ष का सर्वश्रेष्ठ प्रतिपादक माना जा सकता है। फिर भी, यहाँ यह कहा जा सकता है कि मानव जाति की प्राकृतिक समानता बहुत अच्छा विचार है जो प्रजातन्त्र के दो आधारों (दूसरा है स्वतन्त्रता) में से एक है। परन्तु व्यवहार में ऐसी स्थिति नहीं है। यह एक आदर्श है जैसे यह कहना कि “सारी धरती समतल है।”
4) राजनीतिक समानता – इसका अर्थ है कि सत्ता के पदों तक सभी की पहुँच हो। धर्म, जाति, वंश, रक्त, धन, लिंग, भाषा तथा अन्य विचारों के भेदभाव के बिना सभी नागरिकों को सार्वजनिक कार्यों के प्रबन्धन अथवा सार्वजनिक पद धारणा करने में समान अवसर मिलने चाहिए। अत: प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान करने, चुनाव लड़ने, सार्वजनिक सेवा पाने, किसी सरकारी नीति अथवा गतिविधि का समर्थन अथवा विरोध करने, संवैधानिक उपायों से सरकार बदलने आदि जैसे अधिकार मिलने चाहिए। यदि मताधिकार, विचार तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कठोर प्रतिबन्ध हो अथवा जहाँ ऐसे अधिकार समाज के बहुत सीमित वर्ग को प्राप्त हों तो वहाँ राजनीतिक समानता नहीं होती जैसा हम श्वेत शासित दक्षिणी अफ्रीका में देख सकते थे। राजनीतिक समानता के विषय के निहितार्थों से प्रभावित होकर लॉस्की ने इंग्लैण्ड में लार्डों के विशेषाधिकारी की समाप्ति पर बल दिया। कार्ल जे. फ्रेडरिक ने ठीक कहा है कि-“राजनीतिक व्यवस्था में प्रजातान्त्रिक वैधता जिस मात्रा में समाहित होगी, उसी मात्रा में राजनीतिक समानता में वद्धि होगी।’
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