केशवानंद भारती वाद ने संसद को मौलिक अधिकारों में संसोधन का अधिकार दिया |
उच्चतम न्यायालय ने सर्वप्रथम वर्ष 1951 में शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ वाद तथा तत्पश्चात वर्ष 1965 में सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य के वाद में अभिनिर्धारित किया कि संसद संविधान द्वारा मूलाधिकारों में संशोधन कर सकती है।
तदनंतर वर्ष 1967 में गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद में उच्चतम न्यायालय ने शंकरी प्रसाद एवं सज्जन कुमार वाद के विपरीत संसद द्वारा मूलाधिकारों में संशोधन पर रोक लगाने का निर्णय दिया।
चूंकि वर्तमान में नवीनतम निर्णय केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के आधार पर संसद को मूलाधिकारों में संशोधन की शक्ति (सीमित) प्राप्त है।