पृथ्वी जी सतह पर प्राकृतिक कारणों द्वारा चट्टानों के अपने ही स्थान पर यांत्रिक विधि द्वारा टूटने अथवा रासायनिक वियोजन की क्रिया को अपक्षय या अपरदन कहा जाता है
अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है –
चट्टान का संगठन तथा संरचना- चट्टानों में विघटन एवं वियोजन को अपक्षय कहते हैं, जो कमजोर तथा असंगठित चट्टानों में आसानी से घटित होती है।
उदाहरणस्वरूप, रंध्रपूर्ण तथा घुलनशील खनिजों वाली चट्टानों चूना पत्थर एवं डोलोमाइट में रासायनिक अपक्षय शीघ्रता से संपन्न होता है।
इसी प्रकार जिन चट्टानों में परतों की स्थिति लंबवत् रूप में होती है, उसमें भौतिक अपक्षय शीघ्रता से सम्पन्न होता है, जबकि जिन चट्टानों में परतों की स्थिति क्षैतिज रूप में होती है, उसमें भौतिक अपक्षय आसानी से संपंन नहीं होता है।
वनस्पति का प्रभाव- जिन स्थल खण्डों पर वनस्पतियों का आवरण पाया जाता है, वहाँ चट्टानों में अपक्षय कम सक्रिय होता है।
इसके विपरीत वनस्पतियाँ आंशिक रूप से अपक्षय के कारक भी हैं तथा आंशिक रूप से अवरोधक भी हैं।
जलवायु में विभिन्नता- स्थल खण्ड के विभिन्न भागों में जलवायु की विभिन्नता के कारण चट्टानों के अपक्षय में भिन्नता तथा उसकी सक्रियता में पर्याप्त अन्तर होता है।
उदाहरणस्वरूप उष्ण कटिबंधीय आर्द्र भागों में जल की अधिकता के कारण रासायनिक अपक्षय अधिक होता है, जबकि यहाँ पर यांत्रिक अपक्षय नगण्य होता है।
इसके विपरीत शुष्क मरुस्थलीय जलवायु वाले भागों में यांत्रिक अपक्षय अधिक तथा रासायनिक अपक्षय नगण्य होता है।
स्थल के ढाल का स्वभाव- जब स्थलखण्ड का ढाल तीव्र होता है तो उस पर भौतिक या यांत्रिक अपक्षय की गति तेज होती है, क्योंकि यांत्रिक अपक्षय के कारण थोड़ा-सा भी विघटन होने से चट्टानों में ढीलापन आने से चट्टानों का शीघ्र टूटकर नीचे सरकना प्रारंभ हो जाता है।
इससे विपरीत सामान्य ढाल वाले स्थल खण्ड पर यांत्रिक अपक्षय की गति धीमी होती है, क्योंकि अपक्षय से उत्पन्न चट्टान चूर्णों का स्थानांतरण नहीं हो पाता, जिससे चट्टानों में अपक्षय को संरक्षण मिलता है।