दिनकर जी की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए

रामधारीसिंह ‘दिनकर’ राष्ट्रीय जीवन की आकांक्षाओं के उत्कृष्ट प्रतिनिधि कवि हैं।

इनकी कविताओं में विद्रोह, राष्ट्र-प्रेम, अन्याय तथा शोषण के प्रति आवाज उठी है। राष्ट्रकवि का सम्मान देकर राष्ट्र ने उनके प्रति कृतज्ञता का परिचय दिया है।

दिनकर की कविता युगीन समस्याओं को प्रस्तुत करती है। वे ‘ओज’ और ‘माधुर्य’ के कवि के रूप में हिन्दी को अनेक काव्य रचनाएँ दे चुके हैं।

क्रान्तिवीर दिनकर की कविताएँ मन को झकझोर देने में समर्थ हैं। उनके कृतित्व की श्रेष्ठता का प्रमाण है उनकी कृति उर्वशी पर मिला ज्ञानपीठ पुरस्कार। दिनकर जी सच्चे अर्थों में राष्ट्र कवि कहे जाने योग्य हैं।

दिनकर जी एक कवि, निबन्धकार, मनीषी चिन्तक के रूप में जाने जाते हैं।

कुरुक्षेत्र उर्वशी, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, सामधेनी, हारे को हरिनाम जैसी काव्य रचनाओं के साथ-साथ दिनकर ने ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ के रूप में एक श्रेष्ठ गद्य रचना लिखी है।  ‘दिनकर की डायरी‘ भी एक उच्चकोटि की रचना है।

इनके अतिरिक्त भी दिनकर की अनेक गद्य रचनाओं में उनका गम्भीर चिन्तन एवं अध्ययन-मनन व्यक्त हुआ है।

दिनकर की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है

(1) राष्ट्रीयता का स्वर -दिनकर की कविता में राष्ट्रीय भावना का स्वर मुखरित हुआ है। वे देशप्रेम एवं राष्ट्रीयता को सर्वाधिक महत्व देते हैं। पराधीनता को सबसे बड़ा अभिशाप उन्होंने माना है। उनकी रचनाएँ देशवासियों को त्याग, बलिदान एवं राष्ट्रप्रेम की भावना से अनुप्राणित करने वाली हैं।

 (2) प्रगतिवादी भावना-दिनकर के काव्य में अन्याय और शोषण का विरोध है। शोषकों के प्रति रोष तथा शोषितों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए दिनकर जी ने अपनी प्रगतिवादी भावना का परिचय दिया है।

 (3) शान्ति के समर्थक-दिनकर जी ने प्रथम विश्वयुद्ध के कारणों, समस्याओं, युद्ध की उपादेयता आदि पर विचार कर युद्ध दर्शन प्रस्तुत करते हुए ‘कुरुक्षेत्र’ की रचना की है। महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि में लिखी गई इस रचना का मूल प्रतिपाद्य ‘बुद्ध और शान्ति’ है।

4) सौन्दर्य चित्रण-दिनकर ने अपनी काव्यकृति उर्वशी में नारी सौन्दर्य का मनोरम चित्रण किया है। उर्वशी के सौन्दर्य का चित्रण करते हुए वे उसे सनातन नारी कहते हैं। बंशी में कवि ने जिस काम-अध्यात्म को प्रस्तुत किया है, वह उनके गम्भीर चिन्तनशील व्यक्तित्व को प्रस्तुत करता है।

(5) रस योजना -दिनकर मूलतः ओज एवं माधुर्व के कवि है इसीलिए उनकी कविता में योर एवं शृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है। शृंगार रस का एक उदाहरण द्रष्टव्य है

विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से,
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से।

इसी प्रसंग में वीर रस का एक अवतरण द्रष्टव्य है

6) भाषा सौन्दर्य -दिनकर की भाषा शुद्ध, परिष्कृत, परिमार्जित खड़ी बोली है, जिसमें संस्कृत शब्दों की बहुलता है। उनका शब्द चयन सटीक, सार्थक एवं भावाभिव्यक्ति में सहायक

है। उसमें भाव व्यक्त करने की अपूर्व क्षमता है तथा चित्रोपमता एवं ध्वन्यात्मकता का गुण भी विद्यमान है।
निश्चय ही दिनकर जो हिन्दी काव्य रचना में विशिष्ट स्थान के अधिकारी कवि हैं।

रश्मिरथी में उन्होंने महाभारत के उपेक्षित पात्र कर्ण को नायक बनाकर उसकी वीरता, सज्जनता एवं दानवीरता का जो चित्र अंकित किया है, वह अत्यन्त भव्य बन पड़ा है।

पाठक कर्ण के चरित्र से प्रेरणा पाते हैं और उसके उन गुणों का स्मरण करते हैं जो उसे महान योद्धा, दानवीर, उदय एवं शोषण का शिकार बनाए हुए थे। रश्मिरथी में खण्डकाव्य की सभी विशेषताएँ भी उन्होंने समाविष्ट की है।

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